अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें

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कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपनाजमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैंना ही र...

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Madan Mohan Saxena

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