कावेरी नदी के जल बंटवारे पर अन
तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच पिछले दो दशकों से कावेरी नदी के जल बंटवारे पर अनबन की स्थिति निर्मित है। कई बार परिस्थितियां अप्रिय, अकारण संघर्ष की बन गईं, जिसमें दोनों पक्षो ंको नुकसान हुआ, विशेषकर किसानों का। दो दशकों में केन्द्र समेत दोनों राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें आयीं-गयीं, लेकिन इस मुद्दे का पूर्ण समाधान नहीं निकल पाया। कड़वाहट इतनी बढ़ गई कि दोनों राज्यों के नागरिकों के बीच सौहाद्रपूर्ण संबंधों पर खतरना मंडराने लगा। कावेरी जल विवाद पर बनी एक फिल्म थम्बीवियुदायन पर हाल ही में सेंसर बोर्ड ने रोक लगाई। इस फिल्म का नायक एक शक्तिशाली मंत्री की पत्नी व बच्चों का अपहरण कर सरकार से मांग करता है कि नदी का जल किसानों के लिए छोड़ा जाए। सेंसर बोर्ड ने यह दृश्य हटाने का आदेश दिया। जिसे निर्देश राजा महेश ने मानने से इंकार कर दिया। इनके मुताबिक कावेरी के जल बंटवारे पर विवाद का खामियाजा गरीब किसान भुगत रहे हैं। दशकों के चली आ रही इस समस्या को दूर करने के लिए कोई पहल नहीं की जा रही है। संबंधों को दर्शाने का यह एक रचनात्मक तरीका था, लेकिन इसमें नकारात्मकता थी। सकारात्मकता के साथ रचनात्मक तरीका वह है जिसे हाल ही में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपनाया। लगभग 18 वर्षों के इंतजार के बाद कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में महान संत कवि तिरुवल्लूवर की प्रतिमा का अनवारण किया गया।दो हजार वर्ष पूर्व संत तिरुवल्लुवर ने व्यक्ति को जीने की राह दिखाते हुए छोटी-छोटी ढेरों कविताएं लिखी थीं, इनका संकलन तिरुक्कुलर ग्रंथ में किया गया है। तिरुक्कुलर न केवल तमिल भाषियों के लिए वरन पूरे देश में श्रध्दा से पढ़ा जाता है। इसमें गागर में सागर की तरह जीवन दर्शन को समेटा गया है। 1991 में कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एस. बंगारप्पा की पहल पर संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा बेंगलुरू में लगाने का प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन कुछ कट्टरपंथियों के चलते यह कार्य अटका रहा। अब भी प्रतिमा के अनावरण का बेहद विरोध किया गया। अनावरण के दिन यानि 9 अगस्त को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में कार्यक्रम किया गया। इससे पहले मूर्ति लगवाने के विरोध में दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं को कड़ी फटकार लगाते हुए बेंगलूरु हाईकोर्ट ने कहा कि धर्म, जाति व भाषा के आधार पर देश को बांटने की इजाजत नहीं दी जा सकती। कुछ ऐसे ही सद्विचार कर्नाटक के मुख्यमंत्री वाय.एस. येदुरप्पा व तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने प्रकट किए। बेंगलुरू में तिरुवल्लवर की प्रतिमा के साथ-साथ 5 सौ वर्ष पूर्व हुए कन्नड़ के महान कवि सर्वज्ञ की प्रतिमा लगाने की स्वीकृति दी गई। 13 अगस्त को चेन्नई में सर्वज्ञ की प्रतिमा का अनावरण किया गया। दो महान कवियों के द्वारा लिखी कविताओं की मिठास से दो राज्यों की कड़वाहट दूर करने का यह तरीका निश्चित ही प्रशंसनीय और अनुकरणीय है। तिरुवल्लुवर व सर्वज्ञ दोनों ने सदैव किसानों के हितों की बात कही। उनके अनमोल वचनों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। खेती के लिए पानी हर किसान का अधिकार है, चाहे वह िकसी भी जाति, धर्म या प्रदेश का हो। ऐसे विचार दोनों मुख्यमंत्रियों ने प्रकट किए। हालाकि तमिल और कन्नड़ हितो ंकी रक्षा को रेखांकित करना वे नहीं भूले। यह उनकी राजनीतिक जरूरत हो सकती है।श्री येदुरप्पा व श्री करुणानिधि ने अपने-अपने शासनकाल में कई किस्म के विवाद देखे हैं, लेकिन इन दोनों ने क्षेत्रवाद की अवधारणा में सदाशय का तत्व जोड़ते हुए मील का पत्थर साबित होने वाला कार्य किया है। यह गौरतलब है कि अलग-अलग विचारधाराओं व राजनीतिक दर्शन से प्रेरित होने के बावजूद इन दो मुख्यमंत्रियों ने मिलकर काम किया है। भारत में क्षेत्रीयता व उग्रराष्ट्रवाद से पीड़ित अनेक राजनीतिक दल व नेता इससे सबक ले सकते हैं। गुरुनानक से लेकर दादू, कबीर, रहीम, मीराबाई, संत नामदेव, तुकाराम, शंकरदेव आदि भक्तिकाल के कवियों की एक सुदीर्घ परंपरा हमारे देश में रही है। धर्म, भाषा से ऊपर उठकर इनकी रचनाएं सारे देश में पढ़ी-गुनी व गायी जाती है। तब क्या यह अच्छा न होगा कि इनके बताए रास्ते पर चलने का प्रयास राज्यों की सीमाओं को अप्रासंगिक करते हुए किया जाए। जाति, धर्म का बंधन तोड़कर ये सभी केवल मानव कल्याण की बातें करते थे। मनुष्य अपनी भलाई और भावी पीढ़ी के सुख के लिए इतना प्रयास तो कर ही सकता है।
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