नेताजी की नरक यात्रा
नेताजी की नरक यात्रा
प्रेषक : मनोज जैसवाल : दो बार अपने राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके नेता मनोज कुमार अभी कुछ महीने पहले केंद्र में कैबिनेट स्तर के मंत्री बने थे। हर तरफ से खजाने का मुंह उनकी तरफ खुल गया था। उनके स्विस बैंकों के लेखों में दनादन माया बढ़ती जा रही थी। राजधानी के गलियारों में उनका रौब-रुतबा बढ़ गया था। जहां उनके इतने दोस्त बने, वहां दुश्मनों की भी कमी नहीं थी। उन्हें एक तरफ करके खुद आगे आने के लिए कई लोग लालायित थे। चाल चलने वाले आखिरकार कामयाब हो ही गए। मनोज कुमार पर कई जानलेवा हमले हुए, मगर हर बार वह चमत्कारिक रूप से बच निकलते। बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाती। मौत उनके आसपास मंडराती रही। एक दिन नेताजी अपने हल्के से दल-बल सहित लौट रहे थे कि कुछ आत्मघाती लोगों की कारें उनके काफिलें से भिड़ गईं। उसी सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। उनका शरीर तो खैर देश की अमानत था, सो हर तरफ शोक मनाया जा रहा था। नेता जी की आत्मा को देवदूतों ने देवनगरी के बाहर के गेट पर ला पटका था। द्वार पर एक सीनियर देव अधिकारी ने नेताजी का स्वागत करते हुए कहा, ‘सर, माफ कीजिएगा, धरती पर आपके रुतबे के अनुरूप यहां आपका स्वागत तो नहीं किया जा सकेगा। मगर आप जैसे वीआईपी लोगों के लिए हमारे इस लोक के संविधान में एक विशेष प्रावधान है। आप जैसे समाजसेवियों को मृत्यु के बाद स्वर्गलोक में आने पर एक विकल्प दिया जाता है।’ नेताजी की बांछें खिल गईं। मुस्कराते हुए उन्होंने कहा, ‘जल्दी बताएं श्रीमान, मैं तीन दिनों से भूखा-प्यासा हूं। जल्दी से स्वर्गलोग के द्वार खुलवाएं। नृत्य और मदिरा का इंतजाम करवाएं और बताएं कि यहां मुझे क्या-क्या विशेषाधिकार मिलेंगे।’ देव अधिकारी ने विनम्रता से कहा, ‘सर, आप तो धरती पर साक्षात राजा जैसा जीवन बिताकर आए हैं। यहां भी आपको राजसी सत्कार दिया जाएगा। आपको आपकी मर्जी से ही स्वर्ग या नरक की अलॉटमेंट दी जाएगी। यह आपकी खुशी पर निर्भर करता है कि आपको क्या पसंद है। आपको एक रात नरक में गुजारनी है और फिर अगला एक दिन स्वर्ग में। फिर उसके बाद आप बता देना कि पक्के तौर पर आप कहां रहना चाहेंगे। ’ नेताजी तपाक से बोले, ‘सच में क्या ऐसा मुमकिन है। मैंने तो सुना है कि कर्मो के अनुसार ही जन्नत या दोजख के दरवाजे खुलते हैं, मगर जनाब आपकी बातों ने तो मुझे निहाल कर दिया। अगर आप मेरी मानें तो मैंने अभी ही फैसला ले लिया है। मुझे स्वर्ग में भेज दें।’अधिकारी ने थोड़ा सख्त लहजे में कहा, ‘आई एम् सॉरी, सर। यूं हड़बड़ी ठीक नहीं और फिर यहां के कानून का पालन करना जरूरी है। आपको पहले एक दिन नरक में रहना होगा और फिर अगले दिन स्वर्ग में रात बितानी होगी। उसके बाद आपको सोचने-विचारने का समय दिया जाएगा और फिर आपकी मर्जी के मुताबिक आपका निवास स्थान आवंटित कर दिया जाएगा। यह औपचारिकता निभाहनी बहुत जरूरी है, क्योंकि चित्रगुप्त महोदय एक बार निर्णय हो जाने के बाद फिर किसी की शिकायत पर गौर नहीं करते। देखने में आया है कि लोगों के मन बहुत विचलित होते हैं। बहुधा लोग स्वर्ग चुन लेने के बाद अर्जी लगा देते हैं कि उन्हें नरक में स्थान चाहिए। ऐसे प्रार्थना पत्र नष्ट कर दिए जाते हैं, उन पर कोई गौर नहीं किया जाता। मैं नहीं चाहता कि आपको अपने फैसले पर क्षोभ हो। देवदूत ने थोड़ी सांस लेकर आगे कहा, ‘सर आपको हैरानी हो रही है, मगर यह सत्य है। धरती पर पता नहीं किन खब्ती लोगों ने अफवाहें फैला दी हैं कि अच्छे कर्मो के कारण स्वर्ग मिलता है और बुरे कामों के कारण नरक की यातना भोगनी पड़ती है। ऐसी बात नहीं है सर। नरक और स्वर्ग व्यक्ति की रुचि, मानसिकता और चुनाव पर आधारित है। कोई जबरदस्ती वाली बात नहीं है यहां। सच मानें तो यहां असली जनतंत्र है। बस एक बात है कि एक बार चुन लेने के बाद आदमी अपना विकल्प नहीं बदल सकता।’नेताजी अजीब-सी मनस्थिति में पहुंच गए थे। ऐसा कुछ उनके लिए समझ से बिल्कुल परे था। धरती के हर कानून को वह अपने या अपने लोगों के पक्ष में कर लेते थे, मगर यहां उनके साथ क्या घटने वाला है, यह सोचकर उनका कलेजा कांप उठा। हर तरफ अनिश्चय व भय की स्थिति थी। मनोज कुमार को स्वर्ग या नरक में से एक चुनने का अधिकार मिल तो गया, मगर वह इस लोक की वास्तविक रणनति समझ नहीं पा रहे थे। अगर किसी को उसकी मर्जी के मुताबिक जगह मिल जाएगी तो फिर स्वर्ग और नरक को रसातल की संज्ञा दी गई है। काफी देर नीचे उतरने के बाद नरक का गेट उनके सामने था। नरक का स्वागती गेट देखकर उनका मन खिल उठा। वह सोचने लगे कि अगर नरक ऐसा है तो स्वर्ग तो न जाने कितना आकर्षक और लुभावना होगा। सामने का दृश्य देखकर नेताजी गदगद हो गए। एक बड़ा-सा हरा-भरा गोल्फ का मैदान था। थोड़ी ही दूरी पर एक सुंदर क्लब हाउस था। उसके पास खड़े नेताजी के कई जिगरी दोस्त नजर आ रहे थे, जिनके साथ नेता जी ने राजनीति की दलदल में गैर-कानूनी ढंग से करोड़ों रुपए कमाए थे। हरेक व्यक्ति बेहद खुश नजर आ रहा था। आसपास चुलबुली शोख और बिंदास महिलाएं भी इतरा रही थीं। सारा कुछ उनकी जवानी के दिनों के समान ही माहौल था, जब वह क्लबों में रात-रात भर मौज-मस्ती करते रहते थे। उन सभी लोगों ने बड़ी गर्मजोशी से नेताजी को गले लगाया व उनकी शान में कसीदे कहे। फिर वे सब लोग मिलकर आम आदमी के खर्च पर की गई ऐयाशियों के किस्से सुना-सुनाकर देर तक कहकहे लगाते रहे। क्लब में कई प्रकार के मनोरंजक खेल हुए, डांस किए गए, लजीज व्यंजन और उम्दा शराब और कबाब परोसा गया। नेताजी तो यह सब पाकर मस्त ही हो गए। कहां तो उन्हें अपनी मौत का गम खाए जा रहा था। अभी-अभी तो दिल्ली की सुनहरी गद्दी पर काबिज हुए थे। अभी तो विदेशों में ऐशो-इशरत का रास्ता खुला था और तभी मौत ने आ घेरा था। मगर नरक में आज का यह दिलकश मंजर देखकर मनोज कुमार तृप्त हो गए। असमय मरने का सारा गम जाता रहा। वहां शैतान भी आया, जो दिखने में बहुत फिराकदिल, खुशमिजाज और दोस्ताना था। उसने भी मस्त मन से नृत्य किया और कई प्रकार के लतीफे सुनाए। इतने सब में पता ही नहीं कब एक दिन गुजर गया। देवदूत नेताजी को लेने आ पहुंचा। सभी लोगों ने नेताजी को भरे गले से गुड बाय कहा। देवदूत नेताजी को फिर उसी लिफ़्ट में लेकर चला। काफी देर तक बहुत ऊपर जाने के बाद स्वर्ग के मुख्यद्वार के सामने देवदूत ने नेताजी को स्वर्ग में एक दिन के लिए जाने को कहा। स्वर्ग यूं तो बहुत ही बढ़िया जगह थी, मगर नेताजी के स्वभाव और रुचि के अनुकूल वहां कुछ भी नहीं था। सबसे ज्यादा खलने वाली बात तो यह थी कि कोई जाना-पहचाना व्यक्ति वहां नहीं था। मनोज कुमार आज तक भीड़ में घिरे रहते तभी उन्हें अपना जीवन सार्थक लगता था। स्वर्ग के अनजान माहौल में एक पल में ही उनका दम घुटने लगा था। स्वर्ग में एक अपूर्व नीरस शांति थी। नेताजी को सारा मामला बहुत बोर लगा। बादलों पर इतराते प्रसन्न मुद्रा में ध्यान पर बैठे लोगों को देख-देखकर बहुत ही कष्टपूर्ण ढंग से नेताजी का वह एक दिन बीता। देवदूत के साथ नेताजी वापिस मुख्य कार्यालय में लौटे। एक फॉर्म पर उन्हें अपना विकल्प चुनने के लिए कहा गया। नेताजी ने कूटनीति से यह कहते हुए नरक में जाने की इच्छा व्यक्त की, ‘सोचकर तो यही चला था कि स्वर्ग में रहकर ऐश करूंगा, मगर नरक में मेरे साथी भी हैं और मस्ती का माहौल भी है। स्वर्ग वैसे तो बहुत अच्छी जगह है, मगर मुझे लगता है कि मैं नरक में ही रहकर खुश रह सकूंगा। कृपया मुझे नरक में स्थान दे दिया जाए।’ मनोज कुमार की अर्जी मंजूर कर ली गई। नरक मिलने की खुशी में वह झूम उठे। उसी लिफ्ट से देवदूत नेताजी को नरक के द्वार तक छोड़ गया। जब नेताजी नरक से गेट से अंदर दाखिल हुए तो वहां का सारा नजारा बहुत बदला हुआ था। कहीं कोई गोल्फ का मैदान नहीं था, न ही क्लब और न वे रंगीनियां। हर तरफ उजाड़ था, गंदगी थी, लोग गंदगी को बोरों में भर रहे थे और ऊपर से कचरा व गंदगी गिर रही थी। लोगों ने गंदे-फटे कपड़े पहने हुए थे। तभी शैतान ने आकर नेताजी के कंधे पर हाथ रखा। नेताजी ने बौखलाकर कहा, ‘माफ करना जनाब, मुझे समझ नहीं आ रहा है कि माजरा क्या है। कल जब मैं यहां आया था तब यहां गोल्फ क्लब था, हमने खूब मस्ती की थी, शराब और कबाब की पार्टी थी, मगर आज यहां सब कुछ दरिद्रतापूर्ण है। मेरे सारे दोस्तों ने फटे कपड़े पहने हैं और वे कितने घृणित लग रहे हैं। बात क्या है?’ नरक के मुखिया शैतान ने अट्टहास करते हुए कहा, ‘बंधु! धरती पर तुम भी तो यही सब करते रहते हो। चुनाव नजदीक आने पर जनता को कैसे उल्लू बनाते हो। यहां नरक में लोगों की भीड़ जुटाने के लिए हमें भी यह सब करना पड़ता है। कल हम लोग नरक के पक्ष में तुम्हारा वोट लेने के लिए एक प्रकार का चुनाव प्रचार कर रहे थे। उसी का नतीजा है कि तुम जैसे मशहूर नेता ने हमें सेवा का मौका दिया। कल का सारा तामझाम तुम्हें रिझाने के लिए था।’ नेता मनोज कुमार को पहली बार महसूस हुआ कि धरती पर जब वे चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को सब्जबाग दिखाते थे और चुनावों के बाद उन्हें छलते थे, तब जनता को भी कुछ-कुछ ऐसा ही लगता होगा।
Reason: Update
शानदार पोस्ट मनोज जी