असम जल रहा है ?
पूरा देश आज नए राष्ट्र पति का अभिभाषण सुनने और उसपर प्रतिक्रिया में मशगुल है लेकिन पूर्वोतर भारत में आज क्या चल रहा है उसकी चिंता कही नहीं दिखती ना तो मिडिया में और ना ही कांग्रेस के नेताओ द्वारा ही कोई बयान दिए जा रहे है .देश की मीडिया सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रपति के गुणगान में लगी हुई है जबकि आसाम में अब तक अखबारों के अनुसार ५० से अधिक मौत और २ लाख से अधिक लोग अपना घर छोड़ कर पलायन कर चुके है .और अभी भी हिंसा जारी है सबसे खास बात यह की इसे मीडिया द्वारा जातीय हिंसा का नाम दिया जाना है जबकि सर्वविदित है की यह कोई जातीय हिंसा नहीं यह साम्प्रदायिक हिंसा है लेकिन क्योकि असम में कांग्रेस के सरकार है और कांग्रेस के सरकार में तो साम्प्रदायिक हिंसा हो ही नहीं सकते इस लिए सत्ता पोषित चाटुकार मीडिया ने इसे जातीय हिंसा का नाम देकर एक अलग ही कहानी लिख दी है आसाम की स्थिति पूरी तरह बेकाबू हो चुकी है कोकराझाड़ ,बारपेटा ,करीमगंज सहित दर्जनों जिले धीरे धीरे इस दंगे की भेट चढ़ते जा रहे है अलग अलग स्थानों पर ३० हजार से अधिक रेल यात्री फसे हुए है 3 दर्जन से अधिक ट्रेन रुकी हुई है वही २ दर्जन से अधिक ट्रेनों को रद्द किया जा चूका है बड़े पैमाने पर बंगलादेशी घुसपैठियो के हाथो बोडो जन जाती के लोग मारे जा रहे है यही नहीं अब तो हिंदी भाषियो को भी दंगइयो द्वारा निशाना बनाया जा रहा है है असम में बड़े पैमाने पर हिंदी भाषी रहते है जो की आज असुरक्षित है उनकी चिंता किसी को नहीं है राज्य के मुख्या मंत्री तरुण गोगई हालत पर काबू पाने में असफल साबित हो रहे है गृह मंत्रालय सोया हुआ है केंद्र सरकार अपनी गद्दी बचाने में लगी हुई है और महामहिम की आज तो ताज पोशी ही हुई है वो उसी में व्यस्त है आज जो हालत असम में है कभी वही हालत कश्मीर में हुआ करते थे जिसका नतीजा हमारे सामने है कश्मीर से कश्मीरी पंडितो को पालयन करना पड़ा और आज तक कश्मीरी पंडित अपने घर वापस नहीं लौट पाए है कुछ ऐसे ही हालत असम के है १ करोड़ से अधिक बंगलादेशी वाले इस राज्य में भी अब बंगलादेशी घुसपैठिये स्थानीय लोगो का कत्ले आम कर रहे है और सत्ता प्रतिष्ठान मूक दर्शक बनी हुई है लोग अपना घर गृहस्ती छोड़ कर रहत सिविरो में शरण लेने पर यदि विवश है ना तो कही मानवाधिकार वादी हंगामा कर रहे है और ना ही विपक्ष तीस्ता सीतलवाड़ ,स्वामी अग्निवेश और अन्य मानवाधिकार वादी कही नजर नहीं आ रहे है क्या असम की हिंसा उन्हें नहीं दिख रही है क्या इनकी आँखे अंधी हो चुकी है या फिर सत्ता ने इन्हें चुप रहने पर विवष कर दिया है इनकी जुवानो पर आखिर ताला क्यों लगा हुआ है राज्य के मुख्यमंत्री इस हिंसा के सीधे तौर पर जिम्मेवार है ना की कोई और जब राज्य में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो रहा था तब सरकार की कुम्भ्करनी निंद्रा नहीं टूटी जिसका नतीजा हमारे सामने है केंद्र सरकार अविलभ इस हिंसा को रोकने का प्रयास करे ताकि यहाँ के लोगो का जन जीवन सामान्य हो हिंसा फ़ैलाने वालो को चिन्हित कर करवाई की जाये राज्य में राष्ट्रपति साशन लगाया जाये सेना को पूरी जिम्मेवारी दी जाये हमारी सेना पूरी तरह सक्षम है ऐसे दंगो को रोकने में .जागो भारत सरकार जागो .
thanks jaidev for ur comment
hi friends please read may new post
क्या इसे माँ कहेंगे ?মাফ করবেন মহাসয় । ভাসা সমস্যার দরুন বুজতে পারলামনা ।
hi friends plz read my new post
आजाद भारत की गुलाम परम्परा ?