ज़िन्दगी यूँ ही बसर होती रहे ...

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तेज़ तीखी धूप लेता हूँ मगर छाँव पेड़ों की उधर होती रहे मुद्दतों के बाद तू है रूबरू गुफ्तगू ये रात भर

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Digamber Naswa

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