ज़िन्दगी खोती मिलती एक चीज़ हो गई, ज़िन्दगी रेत में मिलती तेहज़ीब हो गई , और कश्तीओं का नसीब बस डूबना हीं था, ज़िन्दगी किनारों को तरसती अजीब हो...
Read this post on probinglife.blogspot.com