बहुत ऐसे शायर रहे जिनकी कोई एक ग़ज़ल किसी मशहूर फ़नकार ने गाई और वो बरसों तक उसी ग़ज़ल की वज़ह से जाने जाते रहे। शहज़ाद जालंधरी साहब की ये ग़ज़ल नूरजहाँ जी ने गाई और इसकी शोहरत इसी बात से है कि इस ग़ज़ल को आज भी नए गायक उसी तरह गुनगुना रहे हैं
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