एक तपिश थी शब्दों को जलना था,वहीँ म्रत्यु की पदचाप थी, चमत्कार था ,अनेक नामो में समाई उसकी उष्मा थी..

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क्या वो इक्छाओं का परिविस्तार था .उच्चारित स्वरों में ,ना कह कर भी कितने गहरे उतर गई एक उम्र वसंत म

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