चाँद की चिता ( भाग-4 )

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मरु का-सा है सूखा आँगनकैसे सावन की पड़ी फुहार है?कुछ तुम ही बतलाओ राहीमेरे मन पर पड़ा त...

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जन्मेजय तिवारी

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