अंज़ाम सोच के कहाँ ...

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अंज़ाम सोच के कहाँ  आगाज़ की जाती है ज़िंदगी I टूट के, बिखर के हीं कई बार...  परवाज़ की जाती है ज़िंदगी I ###

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Neeraj Kumar

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