भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम् । स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम् ॥ १॥ जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकम् । स्वभक्तभीतिभङ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ २॥
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