दो हुए तो क्या मगर हम एक ही घर के सेहन हैं/ एक ही लौ के दिये हैं , एक ही दिन की किरन हैं/ श्लोक के सँग आयतें पढ़ती हमारी तख़्तियाँ हैं/ और होली ईद आपस में अभिन्न सहेलियाँ हैं। / नीरज की कविताएँ neeraj-ki-kavitayen-holi-eid-saheli
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