दंगल से मंगल

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तीसरी बार उन फटेहाल, अधनंगों को आधा दर्जन पुरानी साड़ी-धोती खैरात-स्वरूप बाँटते ही मुझे आत्म-ज्ञा

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जन्मेजय तिवारी

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