इंतज़ार है, क्षितिज में कबसे, काले, घने, बादलों का

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मूर्ख मानवों की करनी से, जलता छप्पर धरती का ! आग लगा फिर पानी ढूंढे,करता जतन, बुझाने का !

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Satish Saxena

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