मैं अपना आरम्भ कितना पीछे छोड़ आया हूं।

4

यूं भी ठिठकना आप की स्मृतियों को ताजा कर देता है। दो पतंगें हवा में पेंचे लड़ा रहीं थी, खिलखिला रही

Read this post on nayajunoon.blogspot.com


Nandlal Sharma

blogs from Jaipur