मंच का फ़नकार

ग़म की कहानी से मुझे भी प्यार है ,दिल आंसुओं के मन्च का फ़नकार है। ऐ दिल भरोसा उस सितमगर पे न कर, उसको शहादत ही सदा स्वीकार है। इक झोपडी जब से बनायी है मैंने ,बिलडर की नज़रों मे मेरा सन्सार है । हम राम की गाथा सुनाते हैं सदा , तेरी ज़ुबां में रावणी अशाआर हैं। दिल के चरागों को, न है डर उसका गो,वो आंधियों के गांव की सरदार है । हां चांदनी फ़िर बादलों के घर चली,पर चांद की गलियां कहां खुद्दार है। मेरी ग़रीबी की ज़रुरत स्वाभिमान,तेरी अमीरी बे-अहम बाज़ार है। मासूम हैं इस गांव के लडके सभी,तेरे नगर की लडकी भी अखबार है। इज़्ज़त लकीरों की सदा हम करते हैं,तेरा तो सारा कुनबा ही गद्दार है।

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Mag[m]
Mag[m]
from Delhi
14 years ago

wah wah....!!! nice poem, but what this is doing in forum Sealed

thanks Mr. mag for appriciation  . I have just entered in this blog  i am unable to my posting place, i hope soon i will get proper place to posts my poetry. sorry for inconvinance

Mag[m]
from Delhi
14 years ago

@ sanjay... its ok dude... just update ur posts on ur blog and link it with indivine column , where people can search uSmile


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