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ना जाने क्यों ...

Kamlesh Kumar
Kamlesh Kumar
from Jaipur
12 years ago

ना जाने क्या होगा अंजाम

फिर से उभर रही इन हसरतों का

एक अजब सी कसमकस की

जद में हूँ मैं इन दिनों

 

कैसे रंग दिखाती है

ये रंगीली

कभी हम होश में न थे

और अभी वो वक़्त न रहा

 

जब हवाएं चली तो

नादाँ बन बैठे

उभर के सामना हुआ तो

मंज़र ही कुछ और था

 

इक चहरे पे ये नज़रें

टिकी न कभी

आज ठहरी भी कहीं तो

वो चेहरा, चेहरा ना रहा