ना जाने क्यों ...
ना जाने क्या होगा अंजाम
फिर से उभर रही इन हसरतों का
एक अजब सी कसमकस की
जद में हूँ मैं इन दिनों
कैसे रंग दिखाती है
ये रंगीली
कभी हम होश में न थे
और अभी वो वक़्त न रहा
जब हवाएं चली तो
नादाँ बन बैठे
उभर के सामना हुआ तो
मंज़र ही कुछ और था
इक चहरे पे ये नज़रें
टिकी न कभी
आज ठहरी भी कहीं तो
वो चेहरा, चेहरा ना रहा