“मैं हूँ बुद्धि मलीन अति, श्रद्धा भक्ति विहीन करूं विनय कछु आपकी, हौं सब ही विधि दीन जै जै नीब करौरी बाबा कृपा करहु आवै सदभावा कैसे मैं तव स्तुति बखानूँ नाम ग्राम कछु मैं नहिं जानूँ जापै कृपा दृष्टि तुम करहु रोग शोक दुःख दारिद हरहु
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